राहुल-जननी - मैथिली शरण गुप्त राहुल-जननी - मैथिली शरण गुप्त MAITHILI SHARAN GUPT इस पद ‘यशोधरा' खंडकाव्य के 'राहुल-जननी' शीर्षक से लिये गये हैं। इनमें गुप्तजी ने यशोधरा के माता रूप और पत्नीरूप का उद्घाटन किया है। चुप रह, चुप रह, हाय अभागे! रोता है अब, किसके आगे? तुझे देख पाता वे रोता, मुझे छोड़ जाते क्यों सोता? अब क्या होगा? तब कुछ होता, सोकर हम खोकर ही जागे! चुप रह, चुप रह, हाय अभागे! बेटा, मैं तो हूँ रोने को; तेरे सारे मल धोने को हँस तू, है सब कुछ होने को. भाग्य आयेंगे फिर भी भागे, चुप रह, चुप रह, हाय अभागे! तुझको क्षीर पिलाकर लूँगी, नयन-नीर ही उनको दूँगी, पर क्या पक्षपातिनी हूँगी? मैंने अपने सब रस त्यागे। चुप रह, चुप रह, हाय अभागे। चेरी भी वह आज कहाँ, कल थी जो रानी; दानी प्रभु ने दिया उसे क्यों मन यह मानी? अबला-जीवन, हाय! तुम्हारी यही कहानी आँचल में है दूध और आँखों में पानी! मेरा शिशु-संसार वह दूध पिये, परिपुष्ट हो। पानी के ही पात्र तुम प्रभो, रुष्ट या तुष्ट हो।
Hide player controls
Hide resume playing