Please join our telegram group - uzz-KTfhfstiMDU1 मूलाधार चक्र -- इसका बीजाक्षर है - “लं“, शक्ति का केंद्र - लाल रंग और चार पंखुडिय़ों वाला कमल है। - यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से के पास होता है, कुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है. - चौकोर तथा उगते हुये सूर्य के समान स्वर्ण वर्ण का है. सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं.धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है. मूलाधार या मूल चक्र प्रवृत्ति, सुरक्षा, अस्तित्व और मानव की मौलिक क्षमता से संबंधित है। यह केंद्र गुप्तांग और गुदा के बीच अवस्थित होता है। शुक्राणु और डिंब के बीच एक समानांतर रूपरेखा होती है, जहां जनन संहिता और कुंडलिनी कुंडली बना कर रहता है। शारीरिक रूप से काम-वासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है। स्वाधिष्ठान चक्र - यह चक्र छह पंखुड़ियों का है. इस चक्र का बीज मंत्र है - “वं“ - जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है, चक्र का स्वरुप अर्ध-चन्द्राकार है, जल तत्त्व का चक्र है - इस चक्र से निम्न भावनाएँ नियंत्रित होती हैं. अवहेलना, सामान्य बुद्धि का अभाव,आग्रह,अविश्वास,सर्वनाश और क्रूरता.कमिटमेंट और साहस बढ़ाता है.स्वाधिष्ठान को आमतौर पर मूत्र तंत्र और अधिवृक्कसे संबंधित भी माना जाता है। स्वाधिष्ठान का मुख्य विषय संबंध, हिंसा, व्यसनों, मौलिक भावनात्मक आवश्यकताएं और सुख है।शारीरिक रूप से स्वाधिष्ठान प्रजनन, मानसिक रूप से रचनात्मकता, भावनात्मक रूप से खुशी और आध्यात्मिक रूप से उत्सुकता को नियंत्रित करता है। मणिपुर चक्र - यह चक्र १० पंखुड़ियों का है, इस चक्र का बीज
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